चण्डीगढ़/कीर्ति कथूरिया : हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जे पी दलाल ने कहा कि नदियों की ढाल (ग्रेडिएंट) बनाये रखने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने एक अहम निर्णय लिया है, कि यदि रेता ऊपर आता है तो खनन विभाग की बजाय नहर विभाग को उस रेता को निकालने का अधिकार दिया जाए। इस संदर्भ में एक कमेटी बनाकर जल्द ही फैसला लिया जाएगा।

जे पी दलाल आज यहां हरियाणा विधानसभा के मॉनसून सत्र में प्रश्नकाल के दौरान एक सदस्य द्वारा मारकंडा नदी की खुदाई व सफाई के संबंध में लगाए गए सवाल का जवाब दे रहे थे।

कृषि मंत्री ने कहा कि चैनलों और ड्रेनों की सफाई और खुदाई की वार्षिक कार्य योजना बनाई जाती है, लेकिन नदियों के लिए ऐसी कोई योजना नहीं बनाई जाती। केवल खनन का कार्य किया जाता है। नदियां घुमावदार प्रकृति की होती हैं, जिसका चैनलों और ड्रेनों की तरह कोई परिभाषित सेक्शन नहीं होता।

उन्होंने बताया कि इस बार बाढ़ और ज्यादा पानी आने के कारण मारकंडा नदी में खतरे का निशान पार हो गया। 1978 में मारकंडा नदी में लगभग 38000 क्यूसिक पानी आया था, जबकि इस बार लगभग 49,522 क्यूसिक पानी आया। इस बार भी जहां-जहां टूटे हुए पैच हैं, उन्हें ठीक किया जाएगा।

कृषि मंत्री ने कहा कि बाढ़ के कारण जिन भी लोगों का घरों, पशुधन या अन्य कोई भी नुकसान हुआ है, वे क्षतिपूर्ति पोर्टल पर अपना नुकसान का ब्यौरा दर्ज करें, सरकार उनकी भरपाई करेगी।

उन्होंने बताया कि मौजूदा बंधों में अंतराल के कारण बाढ़ आई, क्योंकि नदी की 100 प्रतिशत लंबाई के लिए कभी भी बंध नहीं बनाए जाते हैं, जबकि चैनलों और ड्रेनों के लिए भूमि के अधिग्रहण के बाद 100 प्रतिशत तटबंध बनाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि नदी की भूमि निजी भू-मालिकों की है और इसका कभी भी अधिग्रहण नहीं किया गया है। इसके अलावा, नदियों के साथ बंध केवल उसी लम्बाई में बनाए जाते हैं जहां नदी आबादी क्षेत्र के पास बहती है, जिससे उस आबादी क्षेत्र की सुरक्षा हो सके और इसके लिए किसानों द्वारा भूमि उपलब्ध कराई जाती है।

उन्होंने बताया कि मौजूदा बंधों में खाली जगहों को भरने और बाढ़ को रोकने के लिए सरकार द्वारा पहले प्रस्तावों को अनुमोदित किया गया था, लेकिन भू-मालिकों की जमीन नहीं देने के कारण यह संभव नहीं हो सका। हालांकि, अब सरकार के द्वारा खनन विभाग के माध्यम से जहां भी आवश्यक हो, नदियों की सफाई और गाद निकालने की योजना बनाई जा रही है और उपलब्धता का आकलन करने के बाद आवश्यकता / मांग के अनुसार बांधों का निर्माण किया जाएगा।

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