चंडीगढ़/समृद्धि पराशर: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के 38 दलों की मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में विशेष हुई। इस महत्वपूर्ण बैठक में हरियाणा से जननायक जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अजय सिंह चौटाला व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी शामिल हुए। अजय सिंह चौटाला के नेतृत्व वाली जजपा का हरियाणा में भाजपा के साथ अक्टूबर 2019 से गठबंधन है। जजपा को 2019 के चुनाव में 10 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि भाजपा के 40 विधायक चुनकर आए थे। ऐसे में भाजपा ने जजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। उसके बाद दुष्यंत चौटाला को जजपा के कोटे से उपमुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि उकलाना के विधायक अनूप धानक को राज्यमंत्री बनाया गया।

इसके बाद हुए मंत्रिमंडल विस्तार में टोहाना के विधायक देवेंद्र बबली को कैबिनैट मंत्री बनाया गया था। अब पिछले कुछ समय से हरियाणा में भाजपा और जजपा के गठबंधन टूटने की चर्चाएं लगातार जारी रहीं हैं, मगर इन सबके बीच एनडीए के घटक दलों की बैठक में जजपा को भी विशेष तौर पर बुलाए जाने के बाद इन अटकलों पर न केवल विराम लग गया, बल्कि अब इन चर्चाओं में ये तथ्य शुमार हो गया कि संभवत: संसदीय चुनाव दोनों पार्टियां मिलकर लड़ेंगी। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार आगामी संसदीय चुनाव भाजपा-जजपा द्वारा गठबंधन के तहत लडऩे को लेकर अभी से सीटों के बंटवारे पर भी चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। पर्यवेक्षक मानते हैं कि जजपा को हरियाणा की 10 में से 2 सीटें दी जा सकती हैं।

उधर, सियासी पर्यवेक्षक ये भी मानते हैं कि एनडीए की इस बैठक के बाद यह भी तय माना जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व अभी भी अपने घटक दलों के साथ गठबंधन बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रहा है। चुनावी प्रक्रिया को लेकर अभी से मंथन शुरू कर हो गया है। सियासी पर्यवेक्षकों का मानना है कि एनडीए के खिलाफ ‘इंडिया’ गठजोड़ कर एक मंच पर इकट्ठा हुए विरोधी दलों के 26 घटक दलों को आगामी लोकसभा चुनावों में टक्कर देने के लिए भाजपा नेतृत्व अपने पुराने साथियों के साथ संसदीय चुनावों तक हाथ मिलाए रखना चाहती है, ताकि विरोधी दलों को यह संदेश दिया जा सके कि एनडीए के सभी घटक दल भाजपा के साथ मजबूती से एकजुट हैं।

खास बात यह है कि हरियाणा में 10 संसदीय लोकसभा सीटें हैं। अगर भाजपा का जजपा से गठबंधन संसदीय चुनाव में जारी रहता है तो जजपा 10 संसदीय सीटों में से 2 सीटों पर अपना दावा ठोक सकती है। सियासी विश्लेषकों के अनुसार जजपा की ओर से हिसार, सोनीपत, भिवानी-महेंद्रगढ़ व सिरसा सीटों में से दो सीटों पर चुनाव लडऩे को लेकर दावा किया जा सकता है। हिसार संसदीय सीट से 2011 के उपचुनाव में अजय सिंह चौटाला ताल ठोक चुके हैं। दुष्यंत अब तक दो चुनाव हिसार सीट से लड़ चुके हैं। 2014 के चुनाव में हिसार से ही दुष्यंत पहली बार सांसद चुने गए और उसके बाद वे इसी संसदीय क्षेत्र से भाजपा के बृजेंद्र सिंह के सामने वर्ष 2019 का चुनाव हार गए थे। इसी तरह से डॉ. अजय सिंह चौटाला 1999 में भिवानी से लोकसभा के सदस्य चुने गए थे। भिवानी सीट से डा. अजय सिंह चौटाला 2004 और 2009 का लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। इसी प्रकार से दिग्विजय सिंह चौटाला ने 2019 में सोनीपत सीट से चुनाव लड़ा था और सिरसा संसदीय क्षेत्र चौटाला परिवार का गृहक्षेत्र है। ऐसे में जजपा चाहेगी कि सोनीपत, हिसार एवं भिवानी-महेंद्रगढ़ व सिरसा सीटों में से दो सीटें पार्टी को दी जाएं। सियासी पर्यवेक्षकों का मानना है कि इन चार सीटों में से जजपा हिसार और भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर प्राथमिकता के साथ दावा कर सकती है।

हिसार सीट पर फंस सकता है पेंच

बेशक जजपा इस समय एनडीए के घटक दल में शुमार है। पिछले करीब पौने 4 साल से वे हरियाणा में भाजपा के साथ सरकार में शामिल हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि आगामी लोकसभा चुनाव में यदि जजपा भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है और 10 में से 2 सीटों खासकर हिसार व भिवानी-महेंद्रगढ़ संसदीय सीट पर जजपा की प्राथमिकता रहती है तो फिर ऐसे में हिसार सीट को लेकर पेंच फंस सकता है। चूंकि इस सीट से दुष्यंत चौटाला सांसद रह चुके हैं तो वर्तमान में भाजपा के कद्दावर नेता चौ. बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह यहां से सांसद हैं, ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में बृजेंद्र सिंह का दावा तो मजबूत है ही वहीं पिछले वर्ष भाजपा में शामिल हुए कुलदीप बिश्नोई भी लोकसभा चुनाव इसी सीट से लडऩे का इरादा रखते हैं, क्योंकि वे भी हिसार से सांसद रह चुके हैं। पर्यवेक्षकों का मानना है कि ऐसी स्थिति में जजपा के दावे के बीच बृजेंद्र सिंह व कुलदीप बिश्नोई का क्या रुख रहता है? यह भी काफी अहम होगा।

इसके अलावा पर्यवेक्षकों का ये भी कहना है कि वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की सभी 10 सीटों पर विजयी पताका लहराया था तो क्या इस गठबंधन के तहत यदि भाजपा सहयोगी दल जजपा को 2 सीटें देती भी हैं, फिर ये माना जाए कि जीते हुए 10 सांसदों में से किन्हीं 2 की टिकट कटना तय है? यह फैसला भी भाजपा हाईकमान के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। फिलहाल पर्यवेक्षक तमाम पहलुओं पर निगाह बनाए हुए हैं और उन तमाम परिस्थितियों को समझने का प्रयास कर रहे हैं कि वर्ष 2024 के चुनावों में भाजपा समझौते के तहत जजपा को कितनी व कौन सी सींटे दे पाती है।

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