कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर एक्सीलेंस ऑन सरस्वती रिवर और हरियाणा सरस्वती हैरिटेज डेवलपमेंट बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान में ‘द सरस्वती रिवर-सनातन सभ्यता और संस्कृति का उद्गम स्थल- विकसित भारत-2047 के लिए दृष्टि क्षितिज’’ विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए तीसरे दिन के पहले सत्र में हरियाणा सरस्वती हेरिटेज बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह किरमिच अध्यक्षता करते हुए कहा कि सरस्वती के पुनः उद्धार के लिए हरियाणा सरस्वती हेरिटेज बोर्ड की अहम भूमिका रही है।

उन्होंने कहा कि सरस्वती का प्राकृतिक बहाव इसरो सेटेलाइट के अनुसार ही है। वर्ष 2022 में हरियाणा में बाढ़ आने पर ज्यादा पानी आने पर सरस्वती नदी का बहाव चैक करने पर पता चला कि इसरो द्वारा दिए गए पैरियोचैनल ट्रेक के अनुसार ही सरस्वती नदी पानी का बहाव रहा। उन्होंने कहा कि उन्होंने राजस्थान सरकार से लूणी नदी को तीन सौ किलोमीटर तक खोदने का आह्वान किया ताकि सरस्वती नदी के सिरसा ओटी हैड को उसके साथ जोड़ा जा सके जिससे अतिरिक्त पानी उसमें छोड़ा जा सके। उन्होंने बताया कि राजस्थान में लूणी नदी को सरस्वती की ही सहायक नदी के रूप माना जाता है।

द्रोपदी डी ट्रस्ट की चेयरपर्सन, फाउंडर नीरा मिश्रा ने तकनीकी सत्र में ‘धर्म और स्वाभिमान के प्रतीक इंद्रप्रस्थ को पुनः प्राप्त करना’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि धर्म एवं स्वाभिमान शब्द कुरुक्षेत्र से जुड़ा हुआ क्योंकि धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में ही स्वाभिमान का धर्म युद्ध हुआ था। अपने इतिहास को जानना है तो इतिहास का क्रमवार गहन अध्ययन आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इंद्रप्रस्थ का वर्णन महाभारत एवं माहात्म्य में मिलता है। नारद पुराण में इंद्रप्रस्थ को खांडवप्रस्थ भी कहा जाता था जो यमुना के किनारे स्थित था।

प्रोफेसर मनमोहन शर्मा पूर्व इतिहास विभागाध्यक्ष बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय, रोहतक ने अपने शोध पत्र द कल्चर हेरिटेज ऑफ सरस्वती रिवर इन हरियाणा के माध्यम से कहा कि हरियाणा में सरस्वती नदी की विरासत अहम भूमिका में है। उन्होंने कहा कि कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, कैथल, पेहवा, कलायत आदि स्थलों का ऐतिहासिक महत्व है।

डॉ. जीजीथ रवि ने संयुक्त राज्य अमेरिका से ऑनलाइन माध्यम से जुड़ते हुए सरस्वती नदी के उदगम स्थलों को श्रग्वेदों, रामायण और महाभारत ग्रंथों में वर्णित आधार पर चर्चा की। उन्होने कहा जिस-जिस क्षेत्रों से सरस्वती गुजरी वहां-वहां लोगों का सर्वोगीण विकास हुआ था।

लीना मेहेंदले ने कहा कि ‘सरस्वती नदी सनातन सभ्यता एवं सांस्कृतिकी परिवाहक – 2047 का दृष्टिपथ’ पर व्याख्यान देते हुए कहा कि आज भी सेटेलाइट इमेज से पता चलता है कि आज भी सरस्वती नदी बह रही है। रविकान्त ने कहा कि ‘सरस्वतीः एक भाषा वैज्ञानिक अध्ययन है’ विषय पर कहा कि सरस्वती नदी एक समय में इतनी विशाल थी कि पर्वतों की चौटियों का तोड़ देती थी।

केडीबी के मानद सचिव उपेन्द्र सिंघल ने कहा कि बलराम जी ने सरस्वती तीर्थ को लेकर गुजरात के सोमनाथ से चलकर हरियाणा के आदिबद्री तक 1300 किलोमीटर की यात्रा 42 दिन में पूरी की जिसमें उन्होंने 30 तीर्थों का भ्रमण किया। सरस्वती तीर्थ स्थल तपोभूमि के रूप में विख्यात है। वेदों एवं पुराणों में सरस्वती के तट पर स्थित तीर्थ स्थलों के बारे में बताया गया है। मार्गशीर्ष महीने में शुक्ल एकादशी को गीता उपदेश का दिन मानते हैं उसमें बलराम जी की यात्रा के बारे में वर्णन आता है।

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