’90 के दशक की बात है। मेरी पत्नी मुरादाबाद की एक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थीं। हम वहीं रहते थे।

वहां मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा है। उस वक्त शाम होने के बाद औरतों को घर से बाहर नहीं ले जा सकते थे।

माहौल ऐसा था कि अगर मुस्लिम कम्युनिटी के किसी व्यक्ति की बकरी से मेरी स्कूटर छू भी जाती तो वो मुझे उतारकर मारते-पीटते और पत्नी को उठा ले जाते। वहां ऐसा अक्सर होता था।’

जस्टिस बीआर गवई की तरफ जूता फेंकने वाले एडवोकेट राकेश किशोर अपनी जिंदगी से जुड़े इस किस्से से मुस्लिमों के प्रति अपनी सालों पुरानी नाराजगी जता देते हैं।

वे कहते हैं कि जस्टिस गवई ने भी हिंदू देवी-देवताओं और सनातन धर्म का अपमान किया है, इस पर मैं चुप नहीं रह सकता था।

16 सितंबर को CJI गवई ने खजुराहो में भगवान विष्णु की खंडित मूर्ति की बहाली की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी।

इसके विरोध में 6 अक्टूबर को राकेश ने सुप्रीम कोर्ट के अंदर CJI गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की।

जूता CJI तक नहीं पहुंच सका। सुरक्षाकर्मियों ने राकेश को पकड़कर बाहर कर दिया। इस दौरान उसने नारे लगाए- ‘सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान।’

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